Bhagavad Gita 7.4-6

*भगवद्गीता– अध्याय ७, श्लोक ४-६* 

भूमिरापोऽनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च |
अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ||
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम् |
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् ||
एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय |
अहं कृत्स्नस्य जगत: प्रभव: प्रलयस्तथा ||

अनुवाद: 

पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार - यह आठ प्रकार से विभक्त हुई मेरी प्रकृति है। यह मेरी अपरा प्रकृति है, परन्तु हे महाबाहु अर्जुन! इसके अतिरिक्त जीवन तत्वरूपी मेरी परा प्रकृति को जानो जिससे संपूर्ण ब्रह्मांड धारण किया जाता है। यह समझो कि सभी प्राणियों की उत्पत्ति इन दोनो प्रकृतियो से हुई है और मैं ही समस्त ब्रह्माण्ड का मूल तथा प्रलय भी हूँ।

Bhagavad Gita 7.4-6: 

Earth, water, fire, air, ether, mind, intellect, and ego—these are the eight parts of My Nature (Prakriti). This is My Inferior Prakriti; but, O mighty armed Arjun! Besides this, know that My Superior Prakriti is the very life element by which the whole universe is upheld. Understand that all beings are born from these two Prakritis, and I am the source as well as the dissolution of the entire universe.

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
May all sentient beings be at peace, may no one suffer from illness, May all see what is auspicious, may no one suffer. Om peace, peace, peace.

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