Bhagavad Gita 18.68-69

*भगवद्गीता– अध्याय १८, श्लोक ६८-६९* 

य इदं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति |
भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशय: ||
न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तम: |
भविता न च मे तस्मादन्य: प्रियतरो भुवि ||

अनुवाद: 

जो भी मुझमें परम भक्ति के साथ इस परम गोपनीय ज्ञान को मेरे भक्तों को सुनाएगा, वह निस्संदेह मुझे प्राप्त करेगा। मनुष्यों में उस से अधिक मेरा प्रिय कार्य करने वाला कोई भी नहीं है, और भूमंडल में उस से अधिक मेरा प्रिय दूसरा कोई भी नहीं होगा।

Bhagavad Gita 18.68-69:

 Whoever, with supreme devotion to Me, imparts this supreme secret to My devotees will undoubtedly attain Me. There is no one among humans who performs a service dearer to Me than they, and there will never be anyone dearer to Me on earth.

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
May all sentient beings be at peace, may no one suffer from illness, May all see what is auspicious, may no one suffer. Om peace, peace, peace.

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