They are ever-content, steadily united with Me in devotion, self-controlled, of firm resolve, and dedicated to Me in mind and intellect.

भगवद्गीता– अध्याय १२, श्लोक १३–१४

अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च |
निर्ममो निरहङ्कार: समदु:खसुख: क्षमी ||
सन्तुष्ट: सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चय: |
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्त: स मे प्रिय: ||

Those devotees are very dear to Me who are free from malice toward all living beings, who are friendly, and compassionate. They are free from attachment to possessions and egotism, equipoised in happiness and distress, and ever-forgiving. They are ever-content, steadily united with Me in devotion, self-controlled, of firm resolve, and dedicated to Me in mind and intellect.

जो किसी प्राणी से द्वेष नहीं करते, सबके मित्र हैं, दयालु हैं, ऐसे भक्त मुझे अति प्रिय हैं क्योंकि वे स्वामित्व की भावना से अनासक्त और मिथ्या अहंकार से मुक्त रहते हैं, दुख और सुख में समभाव रहते हैं और सदैव क्षमावान होते हैं। वे सदा तृप्त रहते हैं, मेरी भक्ति में ढूंढ़ता से एकीकृत हो जाते हैं, वे आत्म संयमित होकर, दूंढ़-संकल्प के साथ अपना मन और बुद्धि मुझे समर्पित करते हैं।

Bhagavad Gita,

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
May all sentient beings be at peace, may no one suffer from illness, May all see what is auspicious, may no one suffer. Om peace, peace, peace.

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