I being devoid of nature, in me there is no doer or reaper of actions, no inaction or action, nothing visible or invisible.॥5॥

क्व कर्ता क्व च वा भोक्ता
निष्क्रियं स्फुरणं क्व वा।
क्वापरोक्षं फलं वा क्व
निःस्वभावस्य मे सदा॥२०- ५॥



सदा स्वभाव से रहित मुझमें कौन कर्ता है और कौन भोक्ता, क्या निष्क्रियता है और क्या क्रियाशीलता, क्या प्रत्यक्ष है और क्या अप्रत्यक्ष॥५॥



I being devoid of nature, in me there is no doer or reaper of actions, no inaction or action, nothing visible or invisible.॥5॥

Ashtavakra Gita

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
May all sentient beings be at peace, may no one suffer from illness, May all see what is auspicious, may no one suffer. Om peace, peace, peace.

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