I being devoid of nature, in me there is no doer or reaper of actions, no inaction or action, nothing visible or invisible.॥5॥
क्व कर्ता क्व च वा भोक्ता
निष्क्रियं स्फुरणं क्व वा।
क्वापरोक्षं फलं वा क्व
निःस्वभावस्य मे सदा॥२०- ५॥
सदा स्वभाव से रहित मुझमें कौन कर्ता है और कौन भोक्ता, क्या निष्क्रियता है और क्या क्रियाशीलता, क्या प्रत्यक्ष है और क्या अप्रत्यक्ष॥५॥
I being devoid of nature, in me there is no doer or reaper of actions, no inaction or action, nothing visible or invisible.॥5॥
Ashtavakra Gita
Comments