Despite being birthless, imperishable, and the Lord of all beings, keeping My Nature (Prakriti) under control, I manifest Myself through My Divine Energy (Yogmaya).
भगवद्गीता– अध्याय ४, श्लोक ६
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् |
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ||
अनुवाद: मैं जन्महीन, अविनाशी और समस्त प्राणियों का ईश्वर होते हुए भी अपनी प्रकृति को अधीन करके अपनी योगमाया के द्वारा स्वयं को प्रकट करता हूँ।
Despite being birthless, imperishable, and the Lord of all beings, keeping My Nature (Prakriti) under control, I manifest Myself through My Divine Energy (Yogmaya).
Bhagavad Gita
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