There is neither fortitude, prudence nor courage for the yogi whose nature is beyond description and free of individuality.॥79॥
क्व धैर्यं क्व विवेकित्वं
क्व निरातंकतापि वा।
अनिर्वाच्यस्वभावस्य
निःस्वभावस्य योगिनः॥१८- ७९॥
योगी को धैर्य कहाँ, विवेक कहाँ और निर्भयता भी कहाँ? उसका स्वभाव अनिर्वचनीय है और वह वस्तुतः स्वभाव रहित है॥७९॥
There is neither fortitude, prudence nor courage for the yogi whose nature is beyond description and free of individuality.॥79॥
Ashtavakra Gita
Comments