How can noble men be perturbed by praise or blame who see their bodies alike to others.॥10॥
चेष्टमानं शरीरं स्वं पश्यत्यन्यशरीरवत्।
संस्तवे चापि निन्दायां
कथं क्षुभ्येत् महाशयः॥३- १०॥
अपने कार्यशील शरीर को दूसरों के शरीरों की तरह देखने वाले महापुरुषों को प्रशंसा या निंदा कैसे विचलित कर सकती है॥१०॥
How can noble men be perturbed by praise or blame who see their bodies alike to others.॥10॥
Ashtavakra Gita
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