Due to ignorance, self appears as the world; on realizing self it disappears. Due to oversight a rope appears as a snake and on correcting it, snake does not appear any longer.॥7॥
आत्माऽज्ञानाज्जगद्भाति
आत्मज्ञानान्न भासते।
रज्जवज्ञानादहिर्भाति
तज्ज्ञानाद्भासते न हि॥ २-७॥
आत्मा अज्ञानवश ही विश्व के रूप में दिखाई देती है, आत्म-ज्ञान होने पर यह विश्व दिखाई नहीं देता है। रस्सी अज्ञानवश सर्प जैसी दिखाई देती है, रस्सी का ज्ञान हो जाने पर सर्प दिखाई नहीं देता है॥७॥
Due to ignorance, self appears as the world; on realizing self it disappears. Due to oversight a rope appears as a snake and on correcting it, snake does not appear any longer.॥7॥
Ashtavakra Gita
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