VARIETIES OF SPIRIT

Weekly Knowledge 238

Dallas, Texas
27 Jan 2000 
USA

VARIETIES OF SPIRIT

Why should you think God is only one? Why can't He also be many? If He has made man in His own image, what image is He? An African, a Mongolian, a Caucasian, a Japanese, a Filipino? Why are there so many types of man, and so many varieties of things?

There is not just one type of tree, not just one type of snake, cloud, mosquito or vegetable - there is not just one type of anything, so why should God be only one? How could this consciousness that manifested this whole creation and loves variety, be monotonous? God seems to love different varieties. He must be of infinite variety Himself. God can manifest in many names, forms and varieties.

Some schools of thought may not give God the freedom to appear in His many forms. They want Him in one uniform!

You change your appearance to suit the occasion. When such is the case, how could you think there is no variety in the Spirit. The ancient people knew this and that's why they cognized the Divinity as infinite qualities and forms. The Spirit is not dull and boring. The Spirit which is the basis of creation is dynamic and ever changing. God is not only one, but is many!!!

When you accept the variety of Divinity you cease to be a fanatic or a fundamentalist.
Tommy says God is many, God is One, he made so many just for fun.

🌸Jai Guru Dev🌸

साप्ताहिक ज्ञानपत्र २३८
२७ जनवरी , २०००
यूनाइटेड स्टेट्स

चेतना के विभिन्न रूप

तुम ऐसा क्यों सोचते हो कि ईश्वर एक ही है ?ईश्वर भी अनेक क्यों नहीं हो सकते? यदि ईश्वर ने मनुष्य को एपीआई ही छवि के अनुसार बनाया है, तो उनकी छवि क्या है? अफ़्रीकी, मंगोलियन , कलिफोर्नियन, जापानी या फिलिपिनो - मनुष्य इतने प्रकार के क्यों है?

वस्तुओ कि इतनी विविधताएँ क्यों? वृक्ष सिर्फ एक प्रकार का नहीं होता सांप, बादल, मच्छर या सब्जी सिर्फ एक प्रकार के नहीं।कुछ भी सिर्फ एक प्रकार का नहीं है, तो फिर केवल ईश्वर को ही एक क्यों होना चाहिए? जिस चेतना ने इस सम्पूर्ण सृष्टि का प्रकटीकरण किया है और जो विविधता कि प्रेमी है , वह चेतना नीरस कैसे हो सकती है? ईश्वर को विविधता पसंद है, तो वे भी आवश्य ही अनंत प्रकार के होंगे।

ईश्वर की अभिव्यक्ति अनेक नाम, रूप और प्रकार से है।

कुछ विचार धारा के व्यक्ति ईश्वर को अनेक विभिन्न रूपों में प्रकट होने की स्वतंत्रता नहीं देते। वे उन्हें एक ही रूप- 'वर्दी' में चाहते है।

अवसर के अनुसार तुम अपने रूप को बदलते हो, है न? तो तुम कैसे सोच सकते हो की आत्मा में कोई विविधता नहीं? हमारे पूर्वज इस बात को जानते थे और इसलिए उन्होंने दिव्यता के अनंत गुणों व रूपों का ज्ञान कराया। आत्मा नीरस और उबाऊ नहीं है। चेतना - जो इस सृष्टि का आधार है, गतिमान और परिवर्तनशील है। ईश्वर एक ही नहीं, अनेक है।

जब तुम दिव्यता की विविधता को स्वीकार करते हो, तब तुम कटटर और रूढ़िवादी नहीं रह जाते।

🌸जय गुरुदेव🌸

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
May all sentient beings be at peace, may no one suffer from illness, May all see what is auspicious, may no one suffer. Om peace, peace, peace.

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