NIMIT - INSTRUMENT OF THE DIVINE

Weekly Knowledge 279
New Delhi
15 Nov 2000
India

NIMIT - INSTRUMENT OF THE DIVINE

When you are neither clear nor confused, only then can you be a perfect instrument of the Divine! How would an instrument know what is going to be, and when? How can an instrument be confused, and how can an instrument be clear!
This state is called Nimit - just being an instrument of the Divine. Being very clear means not opening to new possibilities and can lead to limitations. Unlimited possibilities are open to one who is not clear and not confused.

Your mind swings from clarity to confusion and confusion to clarity but the state in which there is no doership nor inertia is the most creative and progressive state.
Sharmila: Will this not lead to lethargy?
Sri Sri: No. A sharp instrument does its job perfectly, effortlessly.
Sharmila: What about focus?
Sri Sri: Focus is natural to a dynamic consciousness.
Confusion arises when new information flows in and clarity is lost. Then confusion again seeks clarity. Clarity constricts the possibility of new information. A confused consciousness seeks clarity and every confusion is breaking away from clarity.
If there is only confusion, there is frustration. If there is only clarity, there is rigidity.
After giving contradictory knowledge, Krishna tells Arjuna, "Just be Nimit!" And to be an instrument, the prerequisite is to be madly in love! That's why in love there is neither confusion nor clarity; or there is both - confusion and clarity!
Nazreen: Is truth more important than love?
Sri Sri: I'm confused! Is it clear? (laughter)
🌸Jai Guru Dev🌸
साप्ताहिक ज्ञानपत्र २७९
१५ नवम्बर, २०००
नई दिल्ली, भारत
निमित्त- ईश्वर का उपकरण
जब तुममे न ही स्पष्टता होती है न ही तुम भ्रमित होते हो, तभी तुम ईश्वरके एक पूर्ण उपकरण हो सकते हो। उपकरण यह कैसे जान सकता है कि कब क्या होने वाला है? एक उपकरण भ्रमित या स्पष्ट कैसे हो सकता है ?
इस अवस्था को “निमित” कहते है- बस ईश्वर का एक उपकरण होना । पूर्ण स्पष्ट होने का अर्थ है, नई संभावनाओ के प्रति खुला न होना; जिससे हम सीमित हो जाते है। परंतु असीमित संभावनाएं उसके सम्मुख उजागर होती है जो न स्पष्ट हो और न ही भ्रमित हो।
तुम्हारा मन स्पष्टता और भृम के बीच झूलता है। जिसमे न कर्तामन हो और न ही जड़ता हो व सबसे अधिक सर्जनात्मक और विकासशील स्थिति होती है।
शर्मिला- कही वह निष्क्रियता की ओर तो नही ले जाएगा?
श्री श्री- नही , एक प्रखर उपकरण अपना कार्य पूर्णता से और सहजता से करता है।
शर्मिला- और एकाग्रता?
श्री श्री- एक सक्रिय चेतना के लिए एकाग्रता स्वाभाविक है।
जब नई सूचनाए प्राप्त होती है, तब भृम उत्पन्न होते है और स्पष्टता खत्म हो जाती है। भृम फिर स्पष्टता पाने को प्रयत्न करता है। स्पष्टता के आने से नई सूचनाओ के जाने की सम्भवना कम हो जाती है। एक भ्रमित चेतना स्पष्टता खोजती है और प्रत्येक भृम हमे स्पष्टता से दूर ले जाता है।
यदि केवल भृम ही होता है, तब कुण्ठा होती है।जब केवल स्पष्टता होती है तब कट्टरता आ जाती है।
अंतर्विरोधी ज्ञान देने के बाद कृष्ण ने अर्जुन से कहा- “ केवल निमित्त हो जाओ”। एक उपकरण बनने के लिए प्रेम में दीवाना होना आवश्यक है। इसीलिए प्रेम में न ही स्पष्टता होती है और न ही भृम या स्पष्टता और भृम दोनो एक साथ होते है।
नजरीन- क्या सत्य प्रेम से अधिक महत्वपूर्ण है?
श्री श्री- मैं भ्रमित हूं। स्पष्ट हुआ? (हंसी)
🌸जय गुरुदेव🌸

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
May all sentient beings be at peace, may no one suffer from illness, May all see what is auspicious, may no one suffer. Om peace, peace, peace.

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