DIVINE LOVE AND THE COMPLAINING FACE

Weekly Knowledge 271

Banglore Ashram
21 Sep 2000 
India

DIVINE LOVE AND THE COMPLAINING FACE

How would you like to see yourself happy and bubbling with enthusiasm or dull and difficult to please?
Often you like to be pleased, appeased and cajoled. So you put up a tough, upset face and act difficult to please. If a person has to appease and please ten people all the time, it will be so tiring. People who keep a long face and expect others to cajole and appease them make others run away. Lovers often do this. They expend a lot of energy in cajoling and this brings down the joy and celebration of the moment.

It is okay for you to show your upset mood or tendency once in a while, but doing it over and over again is taxing for you and people you love.

If you feel down, appease and please yourself. Your need to be appeased by someone else is the sign of grossness. This is the root of ignorance. If you want attention, all you get is tension.

Become one whose enthusiasm never dies, come what may.

It is not possible to attain Divine Love with a complaining face. The complaining face is a sign of an unaware mind. If you want to complain, complain to God or your Guru because both have their ears covered. (Laughter)

🌸Jai Guru Dev🌸

साप्ताहिक ज्ञानपत्र २७१
२१ सितंबर, २०००
बंगलोर आश्रम , भारत

दिव्य प्रेम और शिकायती चेहरा

तुम अपने आपको किस रूप में देखना चाहोगे-खुश और उत्साहपूर्ण या दुखी और नीरस जिसे खुश करना भी मुश्किल हो।

कभी कभी तुम चाहते हो कि तुम्हे कोई मनाए, सांत्वना दी और तुम्हारी खुशामद करे, इसलिए तुम दुखी चेहरा लेकर, जिसे खुश करना मुश्किल हो ऐसा अभिनय करने लगते हो। यदि किसी व्यक्ति को हर समय दस लोगो को खुश करना पड़े और सांत्वना देनी पड़े , तो यह बड़ा ही थकाऊ लगेगा। जो लोग लम्बा से चेहरा लेकर रहते है और चाहते है कि दूसरे उनकी खुशामद करे और मनाते रहे, लोग उनके पास से भाग जाते है। प्रेमी अक्सर ऐसा करते है। वे खुशामद करने में अपनी ऊर्जा नष्ट करते है इससे उस क्षण का उत्सव और आनंद कम हो जाता है।

कभी कभी तुम्हारा अपनी उदासीनता दिखाना ठीक है, परंतु बार बार ऐसा करना स्वयं के लिए और जिनसे तुम प्रेम करते हो उनके लिए बोझ हो जाएगा।

यदि तुम कभी निराश भी होते हो, स्वयं हो अपने आपको सांत्वना दो और खुश हो जाओ। तुम्हारे प्रसन्न होने के लिए किसी और कि आवश्यकता होना तुम्हारी जड़ता का प्रतीक है। यही अज्ञानता का मूल तत्व है। अपनी और ध्यान आकृष्ट करने की चाह तुम्हे तनावग्रस्त कर देती है। ऐसा बनो जिसका उत्सव कोई छीन न सके- चाहे कुछ भी हो जाये।

शिकायती चेहरा लेकर दिव्य प्रेम प्राप्त करना संभव नही है। शिकायती चेहरा अज्ञानता का प्रतीक है। यदि तुम्हे शिकायत करनी है तो ईश्वर को या अपने गुरु को करो क्योकि दोनो ने ही अपने कान बन्द कर रखे है।

🌸जय गुरुदेव🌸

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
May all sentient beings be at peace, may no one suffer from illness, May all see what is auspicious, may no one suffer. Om peace, peace, peace.

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