बीमार व्यक्ति को इससे फायदा होता है ।


2 जनवरी 22
अध्याय 10
भाग 2
गीता सार 
गुरुदेव द्वारा 
चार वेद है ऋग्वेद ज्ञानपरख,सामवेद भक्ति परख,यजुर्वेद कर्म परख,अथर्ववेद विज्ञान परख 
श्री कृष्ण कहते हैं वेदों में मैं सामवेद हूं
सामवेद से सारा संगीत उपजा है सात सुरों को गया जाता है 
ये हमारी चेतना में भक्ति ,शांति ,स्फूर्ति तीनों को साथ जागने वाला है सामवेद आलाप जैसा गाना है जिसका कोई अर्थ नहीं होता ,
जो ध्यानी,ज्ञानी ,योगी है वो ही यह पहचानता है ,ये चेतना का स्पंदन है 
अष्टवासु रुद्र है उसमें कुछ रहस्य है 
सूष्म जगत में मनुष्य से ऊपर पितृ है ,जो अच्छा काम करतें हैं वो देव लोक जातें है नहीं तो कुछ समय कर लिए प्रेत योनि में भटकते हैं 
हमारे पूर्वजों ने इसलिए मृत्यु पश्चात दस दिनों का शोक वा गीता पाठ, गरुण पुराण के पाठ का नियम बनाया है जिससे उस आत्मा को मुक्ति मिल सके 
वा वो पितृ योनि में चले जाए 
पितृ के बाद गंधर्व योनि मिलती है जैसे सभी संगीतज्ञ ,ये दूसरो को तो सुकून देते है मगर स्वयं दुःखी रहते हैं
गंधर्व से ऊपर यक्ष होते है जो संपन्न होते हैं 
इनके ऊपर किन्नर हैं ,जितने राजनेता है उनके पास किन्नर हैं 
किन्नर के ऊपर देवता और देवताओं में वसु श्री कृष्ण हैं
वसु के ऊपर सिद्ध ,सदगुरु हैं 
पांच कर्मेंद्रिय, पांच ज्ञान इंद्रिय
तथा एक मन ये ग्यारह ,एकादश रुद्र हैं
ये 11की 11 रूलाएगे तुम्हें ,मन सर्वोपरि है ,मन खराब तो सब खराब । मन अच्छा तो बाकी सब खराब हो तो भी चल जाता है 
11इंद्रियों में प्रधान वो मन मैं ही हूं 
पांचों भूतों में पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु और आकाश में मैं चैतन्य शक्ति हूं 
शक्ति का समूह है दुनिया 
यहां सब गण है ,इनके अधिपति गणपति हैं 
गण कई है जैसे कई ब्लड ग्रुप 
मानसिकता में भी कई गण हैं 
इस दुनिया में सभी वस्तु को एक एक गण में विभाजन कर दिया है  
इन भूतो में मैं चेतना हूं जिनसे ये सब कुछ बना है 
ग्यारह रुद्र में एक शंकर हैं 
शंकर मतलब हमेशा सबका मंगल करने वाले ,
एक रुद्र रूप के रुद्र हैं,एक शांत रूप के रुद्र हैं ,एक सद्योजाता ,एक वामदेव हैं 
इनमें एक शंकर हूं, जो चेतना सबका मंगल करती है 
यक्षों में मैं कुबेर हूं 
हर शहर के अलग यक्ष हैं 
अंग्रेजी में गार्जियन एंजेल्स,इस्लाम में फरिश्ते कहते है 
पुरोहितों में मैं बृहस्पति हूं ,जो देवों के गुरु हैं
शिखरों में मैं मेरु हूं ।
मंगोलिया में हर कहानी शुरू होती है गंगा छोटे तालाब और जब मेरु छोटा सा पहाड़ था 
मेरु पर्वत वो है जिसके आधार पर सारे देवता सब कोई चल रहा है, जो केंद्र है
सुमेरू माने चमकता हुआ मेरु जिसके ईद गिर्द सबकुछ चलता है 
जहां सारे देवता वा दैवीय गुण वास करते हैं 
सेनापति में मैं कार्तिकेय हूं 
ग्वालों में मैं ही वासुदेव कृष्ण हूं
पांडवों में मैं अर्जुन हूं
इस बात को समझने के लिए एक सूक्ष्मता चाहिए 
दृष्टि बदले तो सृष्टि का चमत्कार ,विभूति ,ईश्वर का ऐश्वर्य दिख जाता है
जलाशयों में मैं विशाल सागर हूं
शब्दो में मैं एक शब्द ॐ हूं 
अ के बिना कुछ बोल नहीं सकते 
अ सर्वव्यापी है 
वो अ और ॐ मैं हूं 
यज्ञों में जप यज्ञ मैं हूं 
देव पूजा , संगतिकरण , वा दान को मिलाकर यज्ञ कहते हैं 
द्रव्य यज्ञ ,ज्ञान यज्ञ से ऊपर जप यज्ञ है 
पर्वतों में मैं हिमालय हूं 
पेड़ों में मैं अश्वथ (पीपल )वृक्ष हूं जिसका कल नहीं है ,केवल वर्तमान है ।
जो वर्तमान में जम गया ,स्थिर हो गया ।
पीपल वृक्ष २४ घंटे ऑक्सीजन देता इसलिए इसकी परिक्रमा की जाती है ।
बीमार व्यक्ति को इससे फायदा होता है ।
🙏

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
May all sentient beings be at peace, may no one suffer from illness, May all see what is auspicious, may no one suffer. Om peace, peace, peace.

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