*निष्ठा तुम्हारी सम्पदा है* निष्ठा तुम्हें तुरन्त ही बल देती है। निष्ठा तुममें स्थिरता, केन्द्रितता, प्रशांति और प्रेम लाती है। निष्ठा तुम्हारे लिए आशीर्वाद है।



 *निष्ठा तुम्हारी सम्पदा है* 


यदि तुम सोचते हो कि ईश्वर में तुम्हारी निष्ठा ईश्वर का कुछ हित कर रही है, तो यह तुम्हारी भूल है। ईश्वर या गुरु में तुम्हारी निष्ठा ईश्वर या गुरु का कुछ नहीं करती। निष्ठा तुम्हारी सम्पदा है। निष्ठा तुम्हें तुरन्त ही बल देती है। निष्ठा तुममें स्थिरता, केन्द्रितता, प्रशांति और प्रेम लाती है। निष्ठा तुम्हारे लिए आशीर्वाद है।

यदि तुममें निष्ठा का अभाव है, तुम्हें निष्ठा के लिए प्रार्थना करनी होगी। परन्तु प्रार्थना के लिए निष्ठा की आवश्यकता है। यह विरोधाभासी है। (हँसी) लोग संसार में निष्ठा रखते हैं परन्तु यह पूरा संसार सिर्फ साबुन का बुलबुला है। लोगों को स्वयं में निष्ठा है परन्तु वे जानते नहीं कि वे स्वयं कौन हैं। लोग सोचते है कि ईश्वर में उनकी निष्ठा है परन्तु वे सचमुच नहीं जानते ईश्वर कौन हैं।
निष्ठा तीन प्रकार की होती है:

1 स्वयं में निष्ठा: स्वयं में निष्ठा के बिना तुम सोचते हो- मैं यह नहीं कर सकता, यह मेरे लिए नहीं; मैं कभी इस जिंदगी में मुक्त नहीं हो पाऊँगा।
2 संसार में निष्ठा: संसार में तुम्हें निष्ठा रखनी ही होगी वरना तुम एक इन्च भी नहीं बढ़ सकते। तुम बैंक में रुपये जमा करते हो इस निष्ठा के साथ कि वह तुम्हें वापस मिलेंगे। यदि तुम सब-कुछ पर शक करोगे, तब तुम्हारे लिए कुछ नहीं हो सकता।
3 ईश्वर में निष्ठा: ईश्वर में निष्ठा रखो, तभी तुम्हारा विकास होगा। ये सभी निष्ठाएं आपस में जुड़ी हैं; प्रत्येक का मजबूत होने के लिए तुममें तीनों ही होनी चाहिए। यदि तुम एक पर भी शक करोगे, तुम सब पर शक करना आरम्भ कर दोगे।

प्रश्न: नास्तिक स्वयं में और संसार में विश्वास रखते हैं, पर ईश्वर में नहीं।

श्री श्री: तब उनमें स्वयं के प्रति सम्पूर्ण निष्ठा नहीं। और संसार के प्रति उनकी निष्ठा स्थाई नहीं हो सकती क्योंकि परिवर्तन हमेशा होता रहता है।

ईश्वर, संसार और स्वयं के प्रति निष्ठा का अभाव भय लाता है।

निष्ठा तुम्हें पूर्ण बनाती है- सम्पूर्ण।
प्रश्न: निष्ठा और विश्वास में क्या फर्क है?

श्री श्री: निष्ठा आरम्भ है। विश्वास परिणाम है। स्वयं के प्रति निष्ठा स्वतंत्रता लाती है। संसार में निष्ठा तुम्हें मन की शांति देती है। ईश्वर में निष्ठा तुममें प्रेम जागृत करती है। ईश्वर में निष्ठा के बिना संसार के प्रति निष्ठा होने से भी पूर्ण शान्ति नहीं मिलती। लेकिन यदि तुममें प्रेम है तो स्वत: ही तुममें शांति और स्वतंत्रता होगी। अत्यधिक अशान्त व्यक्तियों को केवल ईश्वर में निष्ठा रखनी चाहिए

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
May all sentient beings be at peace, may no one suffer from illness, May all see what is auspicious, may no one suffer. Om peace, peace, peace.

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