Whenever there is a decline in dharma and an increase in adharma

भगवद्गीता– अध्याय ४, श्लोक ७–८

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ||
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||

अनुवाद: हे अर्जुन! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं धरती पर प्रकट होता हूँ। साधुओं का रक्षा करने, दुष्टों का विनाश करने और धर्म की मर्यादा पुनः स्थापित करने के लिए, मैं युग-युग में प्रकट होता हूँ।

Whenever there is a decline in dharma and an increase in adharma, O Arjuna, at that time I manifest myself on earth. To protect the virtuous, to annihilate the wicked, and to reestablish dharma, I appear age after age.

Bhagavad Gita

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
May all sentient beings be at peace, may no one suffer from illness, May all see what is auspicious, may no one suffer. Om peace, peace, peace.

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