Those who neither rejoice nor harbor hatred, neither lament nor desire, and renounce both good and evil actions—such devoted individuals are dear to me
भगवद्गीता– अध्याय १२, श्लोक १७
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ् क्षति |
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्य: स मे प्रिय: ||
अनुवाद: जो न हर्षित होते हैं और न द्वेष करते हैं, न शोक करते हैं और न आकांक्षा, तथा जो शुभ और अशुभ को त्याग देते हैं, वैसे भक्तिमान् व्यक्ति मुझे प्रिय हैं।
Those who neither rejoice nor harbor hatred, neither lament nor desire, and renounce both good and evil actions—such devoted individuals are dear to me.
Bhagavad Gita
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