There is no existence or non-existence, no non-duality or duality. What more is there to say? Nothing arises out of me.॥14॥
क्व चास्ति क्व च वा नास्ति
क्वास्ति चैकं क्व च द्वयं।
बहुनात्र किमुक्तेन
किंचिन्नोत्तिष्ठते मम॥२०- १४॥
क्या है और क्या नहीं, क्या अद्वैत है और क्या द्वैत, अब बहुत क्या कहा जाये, मुझमें कुछ भी(भाव) नहीं उठता है॥१४॥
There is no existence or non-existence, no non-duality or duality. What more is there to say? Nothing arises out of me.॥14॥
Ashtavakra Gita
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