The wise see all beings in the self (atman) and the self in all beings, for which they do not hate anyone
ईश उपनिषद– मंत्र ६
यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मन्येवानुपश्यति |
सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते ||
तात्पर्य: ज्ञानीजन समस्त भूतों को आत्मा में और आत्मा को समस्त भूतों में देखते हैं, इसलिए वे किसी से भी घृणा नहीं करते।
The wise see all beings in the self (atman) and the self in all beings, for which they do not hate anyone.
Ishavasya Upanishad
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