The self (atman) is neither born nor does it ever die, nor, having once existed, does it ever cease to be.

भगवद्गीता– अध्याय २, श्लोक २०

न जायते म्रियते वा कदाचि
नायं भूत्वा भविता वा न भूय: |
अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ||

अनुवाद: आत्मा का न तो कभी जन्म होता है न ही मृत्यु होती है और न ही एक बार अस्तित्व में आने के बाद उसका अस्तित्व समाप्त होता है। आत्मा अजन्मा, शाश्वत, अजर और अमर है। शरीर के नष्ट हो जाने पर भी यह नष्ट नहीं होता।

The self (atman) is neither born nor does it ever die, nor, having once existed, does it ever cease to be. The self is without birth, eternal, ageless, and immortal. It is not destroyed, even if the body is destroyed.

Bhagavad Gita

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
May all sentient beings be at peace, may no one suffer from illness, May all see what is auspicious, may no one suffer. Om peace, peace, peace.

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