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O Partha! Such is the state of an enlightened self (atman) that having attained it, one is never again deluded. Being established in this consciousness even at the hour of death, one is liberated from the cycle of life and death and attains Brahmic Bliss.

भगवद्गीता– अध्याय २, श्लोक ७२

एषा ब्राह्मी स्थिति: पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति |
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति ||

O Partha! Such is the state of an enlightened self (atman) that having attained it, one is never again deluded. Being established in this consciousness even at the hour of death, one is liberated from the cycle of life and death and attains Brahmic Bliss.

हे पार्थ! ऐसी अवस्था में रहने वाली प्रबुद्ध आत्मा जब ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लेती है, वह फिर कभी भ्रमित नहीं होती तब मृत्यु के समय भी इस दिव्य चेतना में स्थित सिद्ध पुरुष जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है और ब्रह्मानंद को प्राप्त होता है।

Bhagavad Gita

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