illumined persons distinguish the self (atman) as distinct from guṇas and karmas.
भगवद्गीता– अध्याय ३, श्लोक २८
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयो: |
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ||
O mighty-armed Arjun, illumined persons distinguish the self (atman) as distinct from guṇas and karmas. They perceive that it is only the guṇas (in the shape of the senses, mind, and others) that move among the guṇas (in the shape of the objects of perception), and thus they do not get entangled in them.
हे महाबाहु अर्जुन! तत्त्वज्ञानी आत्मा की पहचान गुणों और कर्मों से भिन्न करते हैं वे समझते हैं कि 'इन्द्रिय, मन, आदि के रूप में केवल गुण ही हैं जो इन्द्रिय विषयों, (गुणेषु) में संचालित होते हैं और इसलिए वे उनमें नहीं फंसते।
Bhagavad Gita,
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