Great transcendental happiness comes to the yogi whose mind is calm, whose passions are subdued, who is without sin, and who sees everything in connection with God.
भगवद्गीता– अध्याय ६, श्लोक २७
प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम् |
उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम् ||
Great transcendental happiness comes to the yogi whose mind is calm, whose passions are subdued, who is without sin, and who sees everything in connection with God.
जिस योगी का मन शांत हो जाता है और जिसकी वासनाएँ वश में हो जाती हैं एवं जो निष्पाप है तथा जो प्रत्येक वस्तु का संबंध भगवान के साथ जोड़कर देखता है, उसे अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है।
Bhagavad Gita,
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