Surprise, I am pure consciousness and the world is like a magic. How can there be thoughts of useful and useless in me?॥5॥
अहो चिन्मात्रमेवाहं
इन्द्रजालोपमं जगत्।
अतो मम कथं कुत्र हेयोपादेयकल्पना॥७- ५॥
आश्चर्य मैं शुद्ध चैतन्य हूँ और यह जगत असत्य जादू के समान है, इस प्रकार मुझमें कहाँ और कैसे अच्छे (उपयोगी) और बुरे (अनुपयोगी) की कल्पना॥५॥
Surprise, I am pure consciousness and the world is like a magic. How can there be thoughts of useful and useless in me?॥5॥
Ashtavakra Gita
Comments