In that infinite and stainless state, there remains no feeling of 'I' or any other feeling. Like this I exist, unattached, devoid of desires and at peace.॥4॥
नात्मा भावेषु नो भावस्-
तत्रानन्ते निरंजने।
इत्यसक्तोऽस्पृहः शान्त एतदेवाहमास्थितः॥७- ४॥
उस अनंत और निरंजन अवस्था में न 'मैं' का भाव है और न कोई अन्य भाव ही, इस प्रकार असक्त, बिना किसी इच्छा के और शांत रूप से मैं स्थित हूँ॥४॥
In that infinite and stainless state, there remains no feeling of 'I' or any other feeling. Like this I exist, unattached, devoid of desires and at peace.॥4॥
Ashtavakra Gita
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