निर्ध्यातुं चेष्टितुं वापि
यच्चित्तं न प्रवर्तते।
निर्निमित्तमिदं किंतु
निर्ध्यायेति विचेष्टते॥१८- ३१॥
जीवन्मुक्त का चित्त ध्यान से विरत होने के लिए और व्यवहार करने की चेष्टा नहीं करता है। निमित्त के शून्य होने पर वह ध्यान से विरत भी होता है और व्यवहार भी करता है॥३१॥
He whose mind does not set out to meditate or act, meditates and acts without an object.॥31॥
Ashtavakra Gita
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