Amazingly, this imagined world appears in me due to ignorance, as silver in sea-shell, a snake in the rope, water in the sunlight.॥9॥
अहो विकल्पितं
विश्वंज्ञानान्मयि भासते।
रूप्यं शुक्तौ फणी रज्जौ
वारि सूर्यकरे यथा॥ २-९॥
आश्चर्य, यह कल्पित विश्व अज्ञान से मुझमें दिखाई देता है जैसे सीप में चाँदी, रस्सी में सर्प और सूर्य किरणों में पानी॥९॥
Amazingly, this imagined world appears in me due to ignorance, as silver in sea-shell, a snake in the rope, water in the sunlight.॥9॥
Ashtavakra Gita
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