Amazingly, I do not see duality in a crowd, it also appear desolate. Now who is there to have an attachment with.॥21॥
अहो जनसमूहेऽपि
न द्वैतं पश्यतो मम।
अरण्यमिव संवृत्तं
क्व रतिं करवाण्यहम्॥२-२१॥
आश्चर्य कि मैं लोगों के समूह में भी दूसरे को नहीं देखता हूँ, वह भी निर्जन ही प्रतीत होता है। अब मैं किससे मोह करूँ॥२१॥
Amazingly, I do not see duality in a crowd, it also appear desolate. Now who is there to have an attachment with.॥21॥
Ashtavakra Gita
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