Rishikesh
20 Mar 1996
India
QUESTIONS
A boy asked a question and before Guruji could answer, he was ready with another question.
To this Guruji said, "If you hold onto the question how will you receive the answer? Give away the question to me and then you will find that you are in the answer. If your hands are holding onto the question, how will you receive the answer? Your hands are already full with the question."
🌸Jai Guru Dev🌸
साप्ताहिक ज्ञानपत्र ०४१
२० मार्च, १९९६
स्वार्गश्रम, ऋषिकेश
प्रश्नो और अभिलाषाओं से निपटना
एक युवक ने प्रश्न पूछा। श्री श्री उसका उत्तर देते , उसके पहले ही वह दूसरे प्रश्न के साथ तैयार था। तब गुरूजी ने कहा," यदि तुम केवल प्रश्नो में फसे रहोगे , तुम उत्तर कैसे पाओगे?"
अपने प्रश्न मुझे दे दो , तब तुम देखोगे उत्तर तुम्हारे पास ही है।
अभिलाषाएं अपने आप उत्पन्न होती है , है कि नहीं? वे तुमसे पूछकर नहीं आती। जब इच्छाएं उत्पन्न हो जाती है , तुम उनका क्या करते हो ? यदि तुम ऐसा सोचते हो कि तुम इच्छाहीन हो जायो , तो यह भी एक और इच्छा है।
मैं एक उपाए बताता हूँ-
हवाई जहाज पर जाने के लिए, या सिनेमा देखने के लिए, टिकट खरीदनी पड़ती है। यह टिकट प्रवेश- द्वार पर देनी पड़ती है। यदि तुम उस टिकट को पकडे रखोगे, तो अंदर कैसे जाओगे?
यदि तुम किसी कॉलेज में दाखिल होना चाहते हो तो आवेदन-पत्र की जरुरत है। उसे भरकर जमा देना पड़ता है। उसे पकड़ कर नहीं रख सकते।
इसी प्रकार जीवन-यात्रा में भी अपनी इच्छाओ को पकड़कर मत रखो , उन्हें समर्पित करते चले जाओ, जैसे- जैसे समर्पण करते जाओगे, इच्छाएं भी काम उत्पन्न होगी।
अभागे है वे, जो सदा कामना करते रहते है और उनकी कामनाएं पूरी नहीं होती।
उनसे कुछ भाग्यवान है वे जिनकी इच्छाएं विलम्ब से पूरी होती है।
और अधिक भाग्यवान है वे जिनकी इच्छाएं उत्पन्न होते ही पूरी हो जाती है।
सौभाग्यवान वे है जिनमे कामना उत्पन्न ही नहीं होती, क्योकि इच्छा जाग्रत होने के पहले ही वे तृप्त है।
🌸जय गुरुदेव 🌸
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